મેં પલ દો પલ કા શાયર હૂં! ~ સાહિર લુધિયાનવી

હવે ગતાંકથી આગળ…


મેં પલ દો પલ કા શાયર હું! ~ સાહિર લુધિયાનવી


સાહિરને સાચી સિદ્ધિ તેમનાં ગીતોએ અપાવી છે. પહેલાંના જમાનામાં આજનાં જેટલું ગીતકારનું માન નહોતું. એ માન મેળવવાં માટે સાહિર આખી જિંદગી લડ્યાં: ગાયકો, કે મ્યુઝિક ડિરેક્ટર સાથે. એસ.ડી.બર્મન જેવાં મહાનતમ મ્યુઝિક ડિરેક્ટર સાથે ય બબાલ થઈ ગયેલી. અને એક વિવાદ વખતે તો ગાયક અને મ્યુઝિક ડિરેક્ટરને સાહિરે સંભળાવી દીધેલું કે, તમને શું લાગે છે તમારાં લીધે ગીતો ચાલે છે? મારા લીરિક્સમાં દમ છે એટલે ગીતો ચાલે છે! જે દિવસે મારા લીરિક્સના લીધે ગીતો નહીં ચાલે એ દિવસે હું પાનનો ગલ્લો ખોલી લઈશ!
આ મિજાજ હતો સાહિર સાહેબનો!

किसको खबर थी, किसको यकीं था, ऐसे दिन भी आयेंगे
जीना भी मुश्किल होगा, और मरने भी न पाएंगे
हम जैसे बर्बाद दिलो को जीना क्या और मरना क्या
आज तेरी महफिल से उठे, कल दुनिया से उठ जायेंगे!

સાહિરનું વ્યક્તિત્વ ઘણીવાર વિરોધાભાસી લાગે! એવું જ સાહિરની શાયરીઓ અને ગીતોનું છે.

तेरी तड़प से न तड़पा था मेरा दिल, लेकिन
तेरे सुकून से बैचेन हो गया हूं में
ये जानकर तुझे क्या जाने, कितना गम पहुंचें
की आज तेरे ख्यालों में खो गया हूं में!

ઘણીવાર આપણને અમુક કારણોસર થઈ જાય કે પણ આ બધું કામનું શું?

तू भी कुछ परेशान है
तू भी सोचती होगी
तेरे नाम की शोहरत, तेरे काम क्या आई?

में भी कुछ पशेमा हूं
में भी गौर करता हू
मेरे काम की अज़मत, मेरे काम क्या आई?

યુદ્ધ બાબતે સાહિર લખે છે:

जंग तो खुद एक मस्अला है
जंग क्या मस्अलो को हल देगी
आग और खून आग बख्शेगी
भुक और इहतियाज़ कल देगी!

જીંદગીને વધારે નજીકથી જોઈએ તો?

देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से
चेहरे तमाम लगने लगे है अजीब से!

કોઈ જાણી જોઈને ઉદાસ રહેવા માંગે ખરું?

सदियों से इंसान ये सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है!

हमको उन सस्ती खुशियों का लोभ न दो
हमने सोच-समझकर गम अपनाया है!

अव्वल -अव्वल जिस दिल ने बर्बाद किया
आखिर – आखिर वो दिल ही काम आया है!

શાયરનું ક્ષણિક અસ્તિત્વ સમજાવતા ગીતમાં સાહિર લખે છે:

में पल दो पल का शायर हूं, पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है

मुझसे पहले कितने शायर आए और आकर चले गए
कुछ आहे भरकर लौट गए, कुछ नग्मे गाकर चले गए

वो भी इक पल का किस्सा थे, में भी इक पल का किस्सा हू
कल तुमसे जुदा हो जाऊंगा, गो आज तुम्हारा हिस्सा हू

पल दो पल मैं कुछ कह पाया, इतनी ही सआदात काफी है
पल दो पल तुमने मुझ को सुना, इतनी ही इनायत काफी है

कल और आएंगे नग्मो की खिलती कलिया चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले

कल कोई मुझको याद करे, क्यों कोई मुझको याद करे
मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यों वक्त अपना बर्बाद करे?

દુનિયા પ્રેમની દુશ્મન છે, એવું મોટાં ભાગના શાયરોને ક્યાંક ને ક્યાંક લાગ્યું છે:

दिल का दर्द न जाने दुनिया जाने दिल तड़पाना
प्यार के दो बोलो के बदले दुश्मन हुआ ज़माना!

અને પછી દુનિયાથી કંટાળી જવાય એટલે શું કહે?

दिल ये क्या चीज है और दिल की तमन्ना क्या है
तीर पर तीर चला ले तुझे परवा क्या है?

કોઈ એક માણસ ખોવાય જાય, અને આખી દુનિયા ખોવાઈ ગઈ હોય એવું લાગે ખરું?

तुम न जाने किस जहां में खो गए
हम भरी दुनिया में तन्हा हो गए!

मौत भी आती नहीं
आस भी जाति नहीं
दिल को ये क्या हो गया
कोई शै भाती नहीं
लूटकर मेरा जहां, छुप गए हो तुम कहां?

एक जां और लाख गम
घुट के रह जाए न दम
आओ! तुम को देख ले
डूबती नजरो से हम
लूटकर मेरा जहां, छुप गए हो तुम कहां?

પણ જ્યારે જે માણસ જોઈતું હોય એ જ મળી જાય ત્યારે..

तुम जो मिले आरजू को दिल की राह मिल गई
एक आस मिल गई एक पनाह मिल गईं!

भोली -भोली धड़कनों का आज ढंग और है
जिंदगी वही है जिंदगी का रंग और है!

અને ૧૯૫૫માં આવેલ દેવદાસનું પ્રખ્યાત ગીત..

जिसे तू कुबूल कर ले, वो अदा कहां से लाऊं
तेरे दिल को जो लुभा ले वो सदा कहां से लाऊं?

मैं वो फूल हू की जिसको गया हर कोई मसल के
मेरी उम्र बह गई है मेरे आंसुओ में ढल के
जो बहार बन के बरसे, वो घटा कहा से लाऊं?

तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है
तेरे दिल में गम ही गम है, मेरे दिल में तू ही तू है
जो दिल को चैन दे दे, वो दवा कहा से लाऊं?

मेरी बेबसी है ज़ाहिर, मेरी आहे बेअसर से
कभी मौत भी जो मांगी तो न पाई उसके दर से

जो मुराद लेके आए वो दुआ कहा से लाऊं
तेरे दिल को जो लुभा ले, वो सदा कहा से लाऊं?

સાવધાનમાં પ્રેમની તડપની ઊંચાઈ દર્શાવતા વર્ણવે છે:

सिवा तेरी आरजू के इस दिल में कोई भी आरजू नहीं है
हर एक जज़्बा हर एक धड़कन हर एक हसरत तेरे लिए है!

પ્રેમને ભૂલી શકાતો નથી. અદ્રશ્ય ખજાનાની જેમ એ આખું જીવન સાથે રહે છે.

जियूंगा जब तलक तेरे फसाने याद आयेंगे
कसक बनकर मुहब्बत के तराने याद आयेंगे

मुझे तो जिंदगी भर अब तेरी यादों पे जीना है
तुझे भी क्या कभी गुजरे ज़माने याद आयेंगे

कही गूंजेगी शहनाई तो लेगा दर्द अंगड़ाई
हजारों गम तेरे गम के बहाने याद आयेंगे!

અને પ્યાસા ફિલ્મ તો કેમ ભુલાય? જેના માટે સાહિરે એવરગ્રીન હીટ ગીતો લખ્યાં.

ये महलों, ये तख्तों, ये ताज़ो की दुनिया
ये इंसा के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भुके रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?

जवानी भटकती है बदकार बनकर
जवां जिस्म सजते है बाज़ार बनकर
यहां प्यार होता है ब्योपार बनकर
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?

जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?

અને બીજા ગીતમાં સાહિર લખે છે:

जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
हमने तो जब कलिया मांगी, कांटों का हार मिला!

અને પિયાને વિનંતી કરતા કહે છે:

आज सजन मोहे अलग लगा लो जनम सफल हो जाए
हृदय की पीड़ा, देह की अग्नि, सब शीतल हो जाए

प्रेम सुधा इतनी बरसा दो, जग जल थल हो जाए
आज सजन मोहे अंग लगा लो जनम सफल जो जाए!

નયા દૌર ફિલ્મમાં યુવાનોનો જુસ્સો ચડાવતું અમર રાષ્ટ્રવાદી ગીત આપ્યું.

ये देश है वीर जवानों का
अलबेलो का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना
ये देश है दुनिया का गहना

यहाँ चौड़ी छाती वीरो की
यहाँ गोरी शक्ले हीरो की
यहाँ गाते है रांजे मस्ती में
मचती है धूमे बस्ती में!

અને ફિર સુબહ હોગીમાં સમાજની, દુનિયાની, દેશની કરુણતા દર્શાવતું એક લાંબુ ગીત આપ્યું.

वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी

माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी

दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को ना बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्जत को न बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्माएगी
वो सुबह कभी तो आएगी

बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी

जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी!

અત્યારના કોમવાદ – જાતિવાદના જમાનામાં સાહિરે લખેલું એક ગીત હજું ય એટલું જ અસરકારક છે.

तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है

जिस इल्म ने इंसानों को तक़्सीम किया है
इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है

तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हम ने इसे हिन्दू या मुसलमान बनाया

क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती
हम ने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया

जो तोड़ दे हर बंद वो तूफ़ान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है
इंसाँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है

क़ुरआन न हो जिस में वो मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है

तू अम्न का और सुल्ह का अरमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा!

અને આ તો બધાને યાદ જ હશે ને!!!

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है!

मेरे दिल की मेरे जज़बात की कीमत क्या है
उलझे-उलझे से ख्यालात की कीमत क्या है

मैंने क्यूं प्यार किया तुमने न क्यूं प्यार किया
इन परेशान सवालात कि कीमत क्या है?

तुम जो ये भी न बताओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है!

સાહિર નાસ્તિક હતાં, પણ એ ભગવાનને અનુલક્ષીને કહે છે:

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान
सबको सन्मति दे भगवान सारा जग तेरी सन्तान

इस धरती पर बसने वाले, सब हैं तेरी गोद के पाले
कोई नीच ना कोई महान, सबको सन्मति दे भगवान

जातों नस्लों के बटवारे, झूठ कहाँ ये तेरे द्वारे
तेरे लिए सब एक समान, सबको सन्मति दे भगवान

जनम का कोई मोल नहीं है, जनम मनुष्य का तोल नहीं है
करम से है सबकी पहचान, सबको सन्मति दे भगवान!

એક ગઝલમાં સાહિર લખે છે:

अपना दिल पेश करूँ, अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ

तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़मा छेड़ूँ
या तेरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ

मेरे ख़्वाबों में भी तू, मेरे ख़यालों में भी तू
कौन-सी चीज़ तुझे तुझसे जुदा पेश करूँ

जो तेरे दिल को लुभाए वो अदा मुझमें नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ!

અને છેલ્લે ચિત્રલેખા ફિલ્મનું એક ગીત યાદ કરીએ:

मन रे तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने, जिनका मोह करे

इस जीवन की चढ़ती ढलती, धूप को किसने बांधा
रंग पे किसने पहरे डाले, रुप को किसने बांधा
काहे ये जतन करे!

उतना ही उपकार समझ कोई, जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना, ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे!

તણખો:


मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुँएं में उड़ाता चला गया

बरबादियों का सोग़ मनाना फ़िज़ूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया!

जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया!

ग़म और खुशी में फ़र्क न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया!
-साहिर लुधियानवी


ડૉ.ભાવિક મેરજા

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